महामृत्युंजय मंत्र जाप विधान

महामृत्युंजय मंत्र जाप विधान
वैसे तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप मनुष्य स्वयं भी कर सकता है, जैसे स्नान के समय जब आप जल सर पर डाल रहे हो तब जाप करने से शरीर निरोग रहता है, किसी भी भोज्य या पेय पदार्थ का सेवन करने से पहले इस मंत्र के जाप से उस भोजन का बहुत ही सकारत्मक प्रभाव पड़ता और वह भोजन स्वस्थ प्रद होता है, यही दैनिक जीवन का आधार है, किन्तु किसी मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए आपको महामृत्युंजय मंत्र का जाप किसी विशुद्ध सदाचारी एवं शाकाहारी ब्राह्मण से ही करवाना चाहिए, कुछ विशेष समय के लिए मंत्र जाप की संख्या भी होती है जैसे : - भय से छुटकारा पाने के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है. -रोगों से मुक्ति के लिए 11000 मंत्रों का जप किया जाता है. -पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए, अकाल मृत्यु से बचने के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है. - यदि साधक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना करें, तो वांछित फल की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है.
क्या है इस महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ :
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥
यह महामंत्र वास्तव में द्विअर्थिय है, इसमें भक्त भगवान शिव जो की त्रिनेत्र धारी है, सभी का पालन करने वाले है से प्रार्थना करता है की है महाकाल हम आपका पूजन करते है आप हमारे स्वास्थ की रक्षा करिये, हमे आयु प्रदान करिये और हमारा जीवन फूलो की सुगंध के सामान सुखमय हो, किन्तु अगर हमारे पूर्वजन्मों के कर्मो के कारन यह सम्भव न हो तो जैसे पकने के बाद ककड़ी का फल पकने के पश्चात अपनी बेल से बिना किसी कष्ट और श्रम के अलग हो जाता है और फिर कभी उस बेल में दुबारा नहीं जुड़ता ठीक वैसे ही मुझे इस संसार से सदा के लिए मुक्त करके आवागमन के बंधन से स्वतंत्र कर दीजियेगा, इस मंत्र का वास्तविक अर्थ यही है, कई बार कुछ विद्वान ब्राह्मण भी सोचते है की इस मंत्र के प्रभाव से निरोग होना तय है, किन्तु किसी परिस्थित विशेष में भगवान शिवजी से ये भी प्रार्थना होती है की आवागमन के चक्र से मुक्त ही कर दीजियेगा।
महामृत्युंजय मंत्र की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
इस मंत्र का प्रादुर्भाव मृकण्ड ऋषि के कारण हुआ था, जिनको बहुत समय तक संतान न होने के कारन भगवान के वरस्वरूप संतान होना था, किन्तु वरदान में दीर्घायु किन्तु मंदबुद्धि और अल्पायु किन्तु विद्वान दो में एक बात को चुनना था, तो ऋषि और उनकी पत्नी ने अल्पायु किन्तु विद्वान बालक चुना और जब तय समय पर यम के दूत आये तो भक्त मार्कंडेय जी जो की मृकण्ड ऋषि के पुत्र थे भगवान शिवजी के स्मृति चिन्ह से लिपट और काल के भी स्वामी महाकाल से विनती करने लगे, जो की भगवान शिवजी के तीसरे नेत्र के द्वारा को काल को भयभीत करने के लिए की गयी थी, इस मंत्र के प्रभाव से भगवान शिव प्रकट हुए और मार्कण्डेय जी को यम के बंधनो से मुक्त कर दिया। इस महामंत्र का वर्णन ऋग्वेद में है फिर यजुर्वेद में भी है, भगवान शिवजी के तीसरे नेत्र की कृपा प्राप्ति के कारण ही इसे त्रियंबक मंत्र भी कहा जाता है।

Contact Us

कृपया समस्त पूजन के लिए समपर्क करें और तनावमुक्त जीवन का आनंद उठाये

+91-9098490832

9098490832

शिवालय मंदिर, इंदौर रोड उज्जैन

आपका नाम
आपका ई-मेल
आपका संदेश